ख्यात फिल्म डायरेक्टर मणिरत्नम ने चोल साम्राज्य के इन्ही पोन्नियिन सेल्वन पर फिल्म बनाई है. जिसका पहला भाग रिलीज हुआ है. फिल्म ने पहले हफ्ते में 300 करोड़ रुपए की कमाई के साथ धमाकेदार शुरुआत की है। फिल्म का दूसरा पार्ट 2023 में रिलीज होगा.
जानते हैं कि आखिर चोल राजवंश का इतिहास क्या है , और क्यों इसे भारत के प्रमुख राजवंशों में गिना जाता है,
तमिल भाषा के शब्द ‘पोन्नियिन सेल्वन’ का अर्थ है ‘कावेरी नदी का पुत्र’, मान्यता है कि जब राजराजा प्रथम 5 साल के थे, तो कावेरी में गिर गए थे और कावेरी ने ही इन्हें बचाया था। इसलिए उनका नाम पोन्नियन सेल्वन यानी ‘कावेरी नदी का पुत्र’ पड़ा।
मणिरत्नम अपने ड्रीम प्रोजेक्ट पोन्नयिन सेल्वन को बनाने की कोशिश 1980 और 2010 के दशक में भी कर चुके थे, लेकिन कामयाबी मिली 2019 में। अब तीन साल बाद फिल्म रिलीज हुई है।
देखिये मणिरत्नम की फिल्म पीएस 1 का ट्रेलर
स्वतंत्रता सेनानी ने लिखी थी पोन्नियिन सेल्वन पर आधारित किताब, अब इसी पर फिल्म बनी है
मणिरत्नम ने ये फिल्म आर कृष्णमूर्ति की 1955 में छपी किताब पोन्नियिन सेल्वन के आधार पर बनाई है. ये किताब चोल वंश के सम्राट राजराजा प्रथम की कहानी पर आधारित है। कृष्णमूर्ति कल्कि नाम से लिखते थे। ये किताब पहले 1950-1954 के दौरान एक तमिल पत्रिका कल्कि में साप्ताहिक सीरीज के रूप में छपती थी।
1955 में इस सीरिज को पांच खंडों एक किताब की शकल में प्रकाशित किया गया। ये किताब पूरी तरह ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित नहीं है, लेकिन फिर भी कई इतिहासकारों का मानना है कि कल्कि ने इसमें कई ऐतिहासिक घटनाओं को शामिल किया है।
भारत के प्रमुख राजवंशो में शामिल चोल वंश की दो हजार साल पहले हुई थी स्थापना
चोल राजवंश की गिनती भारत के सबसे प्रमुख राजवंशों में होती है। चोल राजवंश को मुख्यत दो हिस्सों में बांटा जा सकता है- पहला, प्राचीन चोलवंश- जिसने 300 ईसा पूर्व से 7वीं सदी तक राज किया और दूसरा मध्यकालीन चोलवंश- जिसका शासन 8वीं सदी से 13वीं सदी तक था।
चोल वंश की शुरुआत आज से करीब 2300 साल पहले यानी 300 ईसा पूर्व में कावेरी नदी घाटी में हुई थी और तमिलनाडु स्थित वरायूर इसकी राजधानी थी। चोल राजवंश के बारे में ज्यादा एतिहासिक प्रमाण मौजूद नहीं है। इतिहास में सबसे पहले जिस राजा का जिक्र मिलता है, वो थे करिकला।
माना जाता है कि करिकला से पहले भी चोल राजवंश में तीन राजा-एल्लालन, कुलकोटन और यमसाचेचेन्नी हो चुके थे। लेकिन इतिहास में सबसे ज्यादा प्रमाण करिकला के बारे में ही मिलते हैं।
प्राचीन तमिलनाडु और केरल के इतिहास को समेटने वाले संगम साहित्य में करिकला और चोल राजवंश का जिक्र मिलता है। मौर्य सम्राट अशोक के शिलालेखों में भी इनका जिक्र मिलता है।
करिकला के बाद फिर से अगले छ सौ से सात सौ सालो तक के चोल राजवंश के बारे में इतिहास में ज्यादा कुछ मिलता नहीं हैं। इसी बीच संगम साहित्य में जरुर करिकला के बाद भी करीब 6 चोल राजाओं का जिक्र मिलता है।
सबसे महान सम्राट थे राजराजा प्रथम, उन्हें ही कहा जाता था पोन्नयिन सेल्वन
मध्यकालीन या प्रमुख चोल साम्राज्य की शुरुआत 8वीं सदी में राजा विजयालय के साथ होती है। विजयालय ने 848 ईस्वी से 871 ईस्वी तक शासन किया था। विजयालय को दक्षिण भारत चोल साम्राज्य के वास्तविक संस्थापको में शुमार किया जाता है।
पोन्नियिन सेल्वन चोल राजवंश के सबसे महान स्रमाट राजराजा प्रथम या अरुलमोझी वर्मन थे। इनका जन्म 947 ईस्वी में हुआ और इन्होने 985 ईस्वी से 1014 ईस्वी तक शासन किया था। राज प्रथम और उनके बेटे राजेंद्र प्रथम के शासनकाल के दौरान चोल साम्राज्य अपने चरम पर था।
उस समय चोल साम्राज्य दक्षिण में मालदीव और मलेशिया से लेकर श्रीलंका और उत्तर में आंध्र के गोदावरी नदी तक फैला था। उनका साम्राज्य आधुनिक तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल और आंध्र प्रदेश, ओडिशा और श्रीलंका के कुछ हिस्सों तक फैला था।
उन्होंने 996 ईस्वी तक गंगावाड़ी टेरिटरी (मौजूदा कर्नाटक राज्य) और केरल और उत्तरी श्रीलंका पर कब्जा जमा लिया था। 1014 ईस्वी तक राज प्रथम ने लक्षद्वीप और मालदीव द्वीपों पर कब्जा कर लिया था। राज प्रथम को ‘मुमुदी चोल’ की उपाधि मिली थी, जिसका मतलब है चोल, चेर और पंड्या यानी तीन मुकुट धारण करने वाला।
उनके बेटे राजेंद्र प्रथम ने पूरे श्रीलंका पर अधिकार करने के बाद दक्कन के इलाके पर कब्जा जमाया और उत्तर में गंगा नदी के इलाके में भी सैन्य अभियान चलाया। राजेंद्र प्रथम ने चोल साम्राज्य का विस्तार सुमात्रा (इंडोनेशिया) और मलय (मलेशिया) तक किया था।
राजेंद्र प्रथम ने पूरब की ओर सैन्य अभियान चलाते हुए पाटलिपुत्र पर शासन करने वाले पाल वंश के राजा महिपाल को भी हराया था। कहा जाता है राजेंद्र प्रथम ने गंगा के मैदानी इलाकों पर आक्रमण केवल गंगा जल के लिए किया था और उन्होंने बंगाल से गंगा जल लाकर तमिलनाडु के तंजौर स्थित उनके पिता राज प्रथम के बनवाए मंदिर बृहदेश्वर मंदिर में चढ़ाया था।
इसके बाद राजेंद्र प्रथम ने तमिलनाडु के अरियालुर जिले स्थित अपनी नई राजधानी गंगईकोंड चोलपुरम बनाई थी। 1044 ईस्वी में राजेंद्र प्रथम की मौत के कुछ सालों बाद चोल वंश कमजोर पड़ने लगा और 1279 में राजेंद्र तृतीय की मौत के साथ इसका अंत हो गया।
नौसेना रखने वाला था चोल साम्राज्य, इंडोनेशिया, मलेशिया तक था साम्राज्य
चोल साम्राज्य की सबसे बड़ी ताकत उनकी नौसेना थी। इसी की मदद से चोलों ने मलेशिया और इंडोनेशिया तक विजय हासिल की थी।
चोलों ने समुद्री व्यापारियों से काफी मजबूत संबंध बनाए और इसी की वजह से उन्हें दमदार नेवी अभियान चलाने में कामयाबी मिली। इसी दौर में राष्ट्रकूटों ने चोलों को हराया था। उस दौरान चोल राजवंश में उत्तराधिकार की जंग भी बहुत होती थी और यही फिल्म पोन्नियिन सेल्वन का मुख्य विषय है।
राजराजा प्रथम ने बनवाया था दुनिया के सबसे बड़े हिंदू मंदिरों में से एक बृहदेश्वर मंदिर
चोल राजाओं को कई भव्य मंदिरों के निर्माण के लिए भी जाना जाता है। राजराजा प्रथम को चोल साम्राज्य की राजधानी तंजावुर या तंजौर में कावेरी नदी के दक्षिण में एक विशाल और भव्य बृहदेश्वर मंदिर के निर्माण के लिए भी जाना जाता है।
ये उस समय भारत में सबसे बड़ी इमारत थी। भगवान शिव को समर्पित बृहदेश्वर मंदिर दुनिया के सबसे बड़े हिंदू मंदिरों में से एक है। बृहदेश्वर मंदिर आज भी अपनी स्थापत्य कला की वजह से चर्चित है।
UNESCO ने बृहदेश्वर समेत चोल राजाओं के तीन मंदिरों को वर्ल्ड हरेटिज साइट में शामिल किया है। इनमें बृहदेश्वर मंदिर से 40 किलोमीटर दूर स्थित ऐरावतेश्वर मंदिर और 70 किलोमीटर दूर स्थित गंगईकोंड चोलपुरम मंदिर शामिल हैं। ये तीनों मंदिर भगवान शिव को समर्पित हैं।
साथ ही चोल राजाओं ने प्रसिद्ध नटराज की मूर्तियों से लेकर कई कलाकृतियों का निर्माण कराया था। चोलों ने शिलालेखों के रूप में खुद के इतिहास को बयां करती हजारों लाइनें दर्ज की हैं। इसी वजह से उनके समकालीन अन्य राजवंशों की जगह चोल वंश के बारे में ज्यादा जानकारी मौजूद है।
एक अनुमान के मुताबिक, भारत में करीब 60 हजार शिलालेख पाए जा चुके हैं। इनमें से करीब 44 हजार दक्षिण भारत से हैं और उनमें से भी 25 हजार अकेले चोलों के हैं। चोलों के ज्यादातर शिलालेख उनके बनाए मंदिरों में मिलते हैं।
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