गुजरात के मोरबी का सस्पेंशन ब्रिज हादसा उसकी नई फ्लोरिंग की वजह से हुआ था। रिनोवेशन के नाम पर ब्रिज में लगे लकड़ी के बेस को बदलकर एल्युमिनियम की चार लेयर वाली चादरें लगा दी गई थीं। जिसकी वजह से पुल का वजन बढ़ गया था। ऐसे में पुरानी केबल्स भीड़ बढ़ने पर इस लोड को सह नहीं सकीं और ब्रिज टूट गया। यह जानकारी गुजरात पुलिस ने कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर दी है।
मोरबी हादसे में 30 अक्टूबर की शाम को सस्पेंशन ब्रिज टूटने के मामले में पुलिस ने 9 लोगों को गिरफ्तार किया था। इन्हें मंगलवार को मोरबी के मजिस्ट्रियल कोर्ट में पेश किया गया। सभी आरोपियों की रिमांड मांगने के लिए गुजरात पुलिस ने अदालत में जो हलफनामा पेश किया, उसमें ब्रिज के वजन को ही उसके गिरने की मुख्य वजह बताया गया है। हादसे में अब तक 135 मौतों की पुष्टि हो चुकी है।
गुजरात पुलिस ने मंगलवार को मजिस्ट्रियल कोर्ट में पुल हादसे की फोरेंसिक रिपोर्ट दाखिल की है। यह रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में सौंपी गई है। सरकारी वकील ने सुनवाई के बाद बताया है कि पुलिस की तरफ से पेश रिमांड अर्जी में साफ लिखा है कि मरम्मत के दौरान ब्रिज के स्ट्रक्चर की मजबूती पर काम नहीं किया गया। मरम्मत में केवल पुल की फ्लोरिंग से लकड़ी को हटाकर एल्युमिनियम की चादरें लगा दी गई थीं, जिसकी वजह से हादसा हुआ।
सरकारी वकील ने बताया कि फोरेंसिक साइंस लैब की जांच में पता चला है कि जिन चार केबलों पर ब्रिज टिका था, 6 महीने की मरम्मत के दौरान उन्हें नहीं बदला गया था। फोरेसिंक एक्सपर्ट के मुताबिक अत्यधिक पुरानी हो चुकी केबलें नई फ्लोरिंग समेत लोगों का भार नहीं सह सकीं और केबलें टूट गईं।
गुजरात पुलिस ने अदालत को यह भी बताया कि जिन ठेकेदारों को पुल रिपेयर का काम दिया गया, वे इसे करने के लिए योग्य नहीं थे। ठेकेदार सस्पेंशन ब्रिज की तकनीक और स्ट्रक्चर की मजबूती के बारे में आवश्यक जानकारी नहीं रखते थे। इसलिए उन्होंने पुल की ऊपरी सजावट पर ही फोकस किया। इसीलिए पुल देखने में अच्छा और मजबूर नज़र आ रहा था, लेकिन अंदर से वह कमजोर हो चुका था।
गुजरात पुलिस की अर्जी पर मोरबी के मजिस्ट्रियल कोर्ट ने मंगलवार को ओरेवा के मैनेजर दीपक पारेख और दिनेश दवे, ठेकेदार प्रकाश परमार और देवांग परमार को शनिवार तक के लिए पुलिस कस्टडी में भेज दिया है। वहीं, टिकट बुकिंग क्लर्क और सिक्योरिटी गार्ड समेत पांच आरोपियों को भी न्यायिक हिरासत में भेजा गया है।
मोरबी के ऐतिहासिक पुल को 2 करोड़ रुपए के खर्च से रेनोवेट करने का दावा किया गया था, लेकिन खुलने के पांच दिन बाद ही यह गिर गया और 135 लोगों की मौत का कारण भी बना। स्ट्रक्चरल इंजीनियरों की जांच में पता चला कि इस दौरान केबल को संभालने वाली एंकर पिन की मजबूती पर ध्यान ही नहीं दिया गया था। लोड पड़ने से पुल के दरबारगढ़ सिरे पर लगी एंकर पिन उखड़ गई और पुल एक तरफ झुककर नदी में जा गिरा। जिससे 135 से अधिक लोगों की मौत हो गई।