राजस्थान में मानेसर का भूत फिर से जग चुका है, पायलेट ने जो किया उसकी आड में उनकी दावेदारी पर फिर से सवाल खडे कर दिए गए है। हालांकि, यहां ये सवाल भी बडा है कि उस समय कांग्रेस हाईकमान के खिलाफ जाने पर सचिन खेमे को गद्दार कहने वाले गहलोत (Ashok Gehlot) के सिपाही आज खुद हाईकमान के खिलाफ खम ठोक कर खडे हो गए है। गोया वफा और वफादारी, इन दोनो के मायने अब बदल गए है
बहरहाल प्रदेश में जो कुछ घटा, उससे और कुछ हुआ हो या ना हुआ हो, कुछ नेताओ का कद जरूर घट गया है। इस उठापटक को सवा दो साल पहले आए सियासी संकट के दूसरे पार्ट के रूप में देखा जा रहा है। बस इस बार किरदार बदल गए हैं।
बदले हालातो में कांग्रेस के सामने कुछ सवाल खडे हो गए है, जिनके जवाब ढूंढा जाना जरूरी हो गया है, सवाल है कि, क्या-
- अब गांधी परिवार निश्चिंत होकर अशोक गहलोत को अध्यक्ष के पद पर बैठाएगा, या बैठाना चाहेगा?
- आने वाले समय में, खासकर चुनावों से पहले सचिन पायलट और उनके समर्थकों का रुख क्या होगा?
- और सबसे अहम, कि क्या सरकार गिर सकती है?
अव्वल तो ये कि कोई माने या माने इस पूरे घटनाक्रम से अशोक गहलोत की पार्टी के भीतर और बाहर, दोनो जगह छवि प्रभावित हुई है। ऐसे में हाईकमान यानि गांधी परिवार द्वारा कांग्रेस अध्यक्ष पद पर गहलोत के चयन को लेकर संशय पैदा होने की संभावना बलवती हुई है।
अशोक गहलोत के बारे में अभी तक सामान्य तौर पर यह धारणा थी कि वे गांधी परिवार का फैसला बिना हील हुज्जत के स्वीकार करते आए है, लेकिन सीएम पद को लेकर हुए तमाम घटनाक्रम के बाद यह पर्सेप्शन बदल गया है।
गांधी परिवार के नजदीक माने जाने वाले गहलोत के समर्थक विधायकों ने जिस तरह का बर्ताव प्रतिनिधिमंडल के साथ किया है। उसने बाद नजारा बदल गया है। इन सब से गांधी परिवार को ये भी लगने लगा होगा कि अध्यक्ष बनने के बाद गहलोत उनके फैसलों को आंख मूंदकर नहीं मानने वाले। इतना ही नहीं भविष्य में वे गांधी परिवार के लिए खतरा भी बन सकते है। वहीं इस प्रकरण को लेकर केंद्र में बैठे गहलोत के विरोधियों को भी उनके खिलाफ चौसर जमाने का मौका मिल गया है।
क्या विधायकों के इस्तीफे स्वीकार होंगे?
विधायकों ने जिस तरह से और जिस फॉर्मेट में इस्तीफा दिया है, नियमानुसार वह स्वीकार नहीं होगा। लेकिन इसमें अब काफी कुछ स्पीकर डॉ सीपी जोशी के विवेक पर निर्भर है। हालिया राजनीति में ये इस्तीफा केवल दबाव बनाने के लिए किए गए शिगूफा भर है।
इन सब के बीच पायलेट क्या कर रहे है?
मानेसर में मात खाये सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायको की रणनीति अभी वेट एंड वॉच की है। सचिन को हाईकमान की तरफ से मुख्यमंत्री बनाने का आश्वासन निश्चित तौर पर मिला हुआ है। इसी के चलते गहलोत गुट के विधायको- मंत्रियों ने इतने बागी तेवर दिखाए है। पायलट गुट के पास कांग्रेस हाईकमान का समर्थन और उनका शांत रवैया की सबसे बडा प्लस पॉइंट माना जा रहा है।
क्या किसी तीसरे को सीएम बनाने का विकल्प भी बचा है?
ये अब अशोक गहलोत के अध्यक्ष पद का नामांकन करने पर निर्भर करेगा। इस बारे में अब घोषणा हो भी चुकी है, कि सीएम का फैसला अध्यक्ष चुनाव के बाद किया जाएगा। ऐसे में अगर गहलोत अध्यक्ष बनते हैं तो सीएम का पद छोड़ना ही होगा। सचिन की दावेदारी को लेकर उठे बवाल के बाद संभव है कि हाईकमान किसी तीसरे चेहरे पर मोहर लगा कर दोनो पक्षों को शांत कर दे।
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