खुद गहलोत कर रहे जोशी की पैरवी, गांधी परिवार से नजदीकी भी मजबूत पक्ष, पायलेट की दावेदारी पर संकट
राजस्थान की राजनीति में इस समय सबसे बडा सवाल यही घूम रहा है कि गहलोत (Ashok Gehlot) के बाद प्रदेश का मुखिया कौन होगा? जैसे जैसे कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर स्थितियां साफ होती गई, वैसे वैसे ही राजस्थान के सीएम को लेकर सवाल गहराता ही चला गया। गहलोत के बाद कौन के जवाब में पायलेट से लेकर डोटासरा, धारीवाल और कल्ला से होते हुए कांटा अब सीपी जोशी (Dr CP Joshi) पर आकर अटक गया है। मौजूदा हालात में बात करे तो जहां कुछ समय पहले तक गहलोत के बाद सीएम पद के एकमात्र स्वाभाविक दावेदार अकेले पायलेट माने जा रहे थे। वहीं अब जोशी भी उतनी ही मजबूती से सीएम पद के लिए ताल ठोकते नजर आ रहे है।
इन चर्चाओ को ज्यादा बल मिला जब अशोक गहलोत ने सोनिया-राहुल से मुलाकात के बाद मुख्यमंत्री पद छोड़ने के साफ संकेत दिए। माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री पद को लेकर खुद गहलोत ने ही सीपी जोशी का नाम सुझाया है। हालांकि, गहलोत के तीन दिन के दौरे में जिस तरह कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा उनके साथ दिख रहे थे, भविष्य में उनकी भूमिका को लेकर भी संशय बरकरार है।
इस सारी सियासी गहमागहमी में जानते है मनोविज्ञान के प्रोफेसर डॉ सीपी जोशी के बारे में जिन्होने 18 साल पहले राजनीति को पूरी तरह बाय बाय करने का मन बना लिया था, लेकिन समर्थकों की समझाईश के बाद वो वापस सक्रिय राजनीति में लौटे, और ऐसे लौटे कि फिर पूरी तरह बस इसी मे रम गए..
- अशोक गहलोत और सीपी जोशी दोनो ही 80 के दशक में प्रदेश की राजनीति में युवा चेहरों के रूप में उभरे थे। दोनों ने राजनीति की शुरुआत अपने छात्र जीवन से की। जोशी उदयपुर की मोहन लाल सुखाड़िया यूनिवर्सिटी में छात्र संघ अध्यक्ष बने। बाद में वे यहीं साइकोलॉजी के प्रोफेसर भी बन गए।
- गहलोत ने अपना पहला विधानसभा चुनाव 1977 में लड़ा और 1980 में सांसद बन गए। वहीं जोशी ने 1980 में विधानसभा चुनाव लड़ा और विधायक बने। इसके बाद उन्होंने फिर 1985 में विधानसभा चुनाव जीता।
- गहलोत लोकसभा और युवा जोशी विधानसभा में चर्चित चेहरे बने और इस दौरान दोनों के रिश्ते भी खासे परवान चढ़े। दोस्ती इतनी थी कि जब 1993 में जोशी का टिकट कट गया उसके बाद 1998 में गहलोत ने जोशी को विधानसभा का टिकट दिलाने में खासी भूमिका निभाई।
- इसके बाद जब इसी साल गहलोत मुख्यमंत्री बने तो उन्होने जोशी को मंत्री बनाया और शिक्षा, ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज, पेयजल जैसे महत्वपूर्ण विभाग दिए। बाद में जब 2007 में जोशी कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष बने और 2008 में उन्होने नाथद्वारा से चुनाव लडा तब वे सीएम पद के स्वाभाविक दावेदार माने जा रहे थे।
- इस चुनाव में वे महज एक वोट से चुनाव हार गए। इस हार से महज एक घन्टे के भीतर जोशी ने राजनीति से संन्यास लेने का निर्णय कर लिया। इतना ही नहीं उन्होने सुखाड़िया यूनिवर्सिटी के कुलपति को फोन कर वापस यूनिवर्सिटी में पढ़ाने की इच्छा तक जाहिर कर दी थी। बाद में उनके समर्थकों ने उनका मन बदलने के लिए काफी कोशिश की, बहरहाल उन्होंने अपना निर्णय बदला और बाद में सरकार में केंद्रीय मंत्री बने।
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