झारखंड में जैन तीर्थ सम्मेद शिखर को पर्यटक स्थल बनाए जाने का विरोध कर रहे जैन मुनि सुज्ञेयसागर महाराज ने मंगलवार को प्राण त्याग दिए। वे झारखंड सरकार के फैसले के खिलाफ पिछले 10 दिन से आमरण अनशन पर थे। सुज्ञेयसागर 72 साल के थे। झारखंड सरकार के फैसले के बाद आचार्य सुज्ञेयसागर सांगानेर में 25 दिसंबर से अनशन कर रहे थे। मंगलवार सुबह उनकी डोल यात्रा सांगानेर संघीजी मंदिर से निकाली गई। इस दौरान आचार्य सुनील सागर सहित बड़ी संख्या में जैन समाज के लोग मौजूद रहे। जैन मुनि काे जयपुर के सांगानेर में समाधि दी गई।
मुनि सुज्ञेयसागर का जन्म जोधपुर के बिलाड़ा ग्राम में हुआ था, लेकिन उनका कर्मक्षेत्र मुंबई का अंधेरी रहा। उन्होंने आचार्य सुनील सागर से गिरनार में दीक्षा, बांसवाड़ा में मुनि दीक्षा और सम्मेद शिखर में क्षुल्लक दीक्षा ली थी। मुनि ने शुरू से उपवास व्रत की पालना की और अंत में तीर्थ को बचाने के लिए उपवास रखा और अंतत: प्राण त्याग दिए। संत का घर का नाम नेमिराज था।
दरअसल, झारखंड सरकार ने गिरिडीह जिला के पारसनाथ पहाड़ी को टूरिस्ट प्लेस घोषित किया है। इसके खिलाफ देशभर में जैन समाज के लोग प्रदर्शन कर रहे हैं। पारसनाथ पहाड़ी दुनियां भर के जैन धर्म के लोगों में सर्वोच्च तीर्थ सम्मेद शिखर के तौर पर प्रसिद्ध है। जैन समाज को आशंका है कि सम्मेद शिखर के पर्यटन स्थल बनने के बाद यहां मांस-मदिरा आदि बिकने लगेगा, यह समाज की भावना-मान्यता के खिलाफ है।
आपको बता दें कि झारखंड का हिमालय माने जाने वाले इस स्थान पर जैनियों का पवित्र तीर्थ शिखरजी स्थापित है। इस पुण्यक्षेत्र में जैन धर्म के 24 में से 20 तीर्थंकरों ने मोक्ष की प्राप्ति की। इसी पहाड़ी पर 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ ने भी निर्वाण प्राप्त किया था। पवित्र पर्वत के शिखर तक श्रद्धालु पैदल या डोली से जाते हैं। इसके बाद जंगलों, पहाड़ों के दुर्गम रास्तों से गुजरते हुए 9 किलोमीटर की यात्रा तय कर शिखर पर पहुंचते हैं। जैन समाज की मांग है कि सरकार पूरी परिक्रमा के क्षेत्र और इसके 5 किलोमीटर के दायरे के क्षेत्र को पवित्र स्थल घोषित करें, ताकि इसकी पवित्रता बनी रहे।
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