मणिपुर हाईकोर्ट के एक फैसले से राज्य में तनाव बढ़ गया है। भड़की हिंसा को देखते हुए मणिपुर में सेना को तैनात किया गया। लोगों को सुरक्षित जगहों पर शिफ्ट किया जा रहा है और कानून व्यवस्था बनाए रखने की कोशिश की जा रही है।
मणिपुर हाईकोर्ट ने 19 अप्रैल को अपने फैसले में कहा था कि सरकार को मैती समुदाय को जनजातीय वर्ग में शामिल करने पर विचार करना चाहिए। हाईकोर्ट ने इसके लिए राज्य सरकार को चार हफ्ते का समय दिया।
मणिपुर में हाईकोर्ट के इसी फैसले का विरोध हो रहा है। फैसले के विरोध में मणिपुर के बिशनुपुर और चंद्रचूड़पुर जिलों में हिंसा हुई है। हिंसा को रोकने के लिए सरकार ने पूरे राज्य में 5 दिनों के लिए मोबाइल इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी है। चंद्रचूड़पुर जिले में कर्फ्यू भी लगाया गया है।
इधर, हाईकोर्ट के फैसले के विरोध में बुधवार को विभिन्न छात्र संगठनों ने ऑल ट्राइबल स्टूडेंट यूनियन के बैनर तले मार्च निकाला था। प्रदर्शनकारी मैती समुदाय को जनजाति का दर्जा देने का विरोध कर रहे हैं।
क्या है विवाद ?
दरअसल, मणिपुर में मैती समुदाय करीब 60 प्रतिशत लोग निवास करते हैं। मणिपुर में मैती समुदाय इंफाल घाटी और उसके आसपास के इलाकों में बसा हुआ है। मैती समुदाय की मांग है कि म्यांमार और बांग्लादेश के अवैध घुसपैठियों की वजह से उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। मौजूदा कानून के मुताबिक उन्हें राज्य के पहाड़ी इलाकों में बसने की इजाजत नहीं है। यही वजह है कि मैती समुदाय ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर उन्हें जनजातीय वर्ग में शामिल करने की मांग की है।
जनजातीय वर्ग क्यों कर रहा है विरोध?
वहीं, हाईकोर्ट के फैसले का राज्य के जनजातीय वर्ग के लोग विरोध कर रहे हैं। जनजातीय वर्ग को डर है कि मैती समुदाय को अगर जनजातीय वर्ग में शामिल कर लिया जाता है तो वह उनकी जमीन और संसाधनों पर कब्जा कर लेंगे
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