कला व संस्कृति

जैसलमेर – किले और हवेलियों का शहर

पर्यटन के त्रिकोणीय सर्किट का महत्वपूर्ण शहर जैसलमेर जहाँ राजस्थान में आने वाला हरेक देशी और विदेशी पर्यटक अपने ट्रिप में जैसलमेर को शामिल करना नहीं भूलता। ‘धरती धोरां री’ गीत जैसलमेर के धोरों के लिए उपयुक्त नज़र आता है। थार मरूस्थल के बीच बसा जैसलमेर, अपनी पीले पत्थर की इमारतों और रेत के धोरों पर ऊँटों की कतारों के लिए विशेषकर विदेशी पर्यटकों के लिए सुनहरी याद बन जाता है। किलों का नगर – अगर आपकी रूचि भूविज्ञान में है तो जैसलमेर आपकी पहली पसंद होगा। जोधपुर से लगभग 15 कि.मी. दूर स्थित ’अक़क्ल वुड’ फॉसिल पार्क में आप 180 मिलियन वर्ष पूर्व थार रेगिस्तान की भूगर्भीय घटनाओं और परिवर्तनों को जान सकते हैं। ‘गोल्डन सिटी’ के नाम से लोकप्रिय जैसलमेर पाकिस्तान की सीमा और थार रेगिस्तान के निकट पश्चिमी राजस्थान और भारत के सीमा प्रहरी के रूप में कार्य करता है। शहर का सबसे प्रमुख आकर्षण है जैसलमेर का क़िला, जिसे सोनार किला (द गोल्डन फोर्ट) भी कहा जाता है। भारत के अधिकांश अन्य क़िलों से अलग जैसलमेर के क़िले मात्र पर्यटन आकर्षण ही नहीं हैं, इनके भीतर दुकानें, होटल और प्राचीन हवेलियाँ (घर) आज भी मौजूद हैं, जहाँ पीढ़ी दर पीढ़ी लोग रहते आ रहे हैं। जैसलमेर का इतिहास – 12वीं शताब्दी पूर्व से मिलता है जैसलमेर का इतिहास। देवराज के रावल और सबसे बड़े वारिस रावल जैसल के एक छोटे सौतेले भाई को लोदुरवा का सिंहासन दे दिया गया था। अतः वे अपना राज्य स्थापित करने के लिए नया स्थान खोजने लगे। जब वे ऋषि ईसल के पास आए तब ऋषि ने उन्हें भगवान कृष्ण की उस भविष्यवाणी के बारे में बताया। जिसमें कहा गया था कि यदुवंश के वंशज इस स्थान पर एक नया राज्य बनाएंगे। 1156 में रावल जैसल ने यहां एक मिट्टी के क़िले का निर्माण करवाया, जिसका नाम जैसलमेर रखा और उन्होंने इसे अपनी राजधानी घोषित कर दिया। वक़्त के थपेड़े खाने के बावजूद, यहाँ की कला, संस्कृति, क़िले, हवेलियाँ और सोने जैसी माटी, बार बार जैसलमेर आने के लिए आमंत्रित करती है। यहाँ की रेत के कण-कण में पिछले आठ सौ वर्षों के इतिहास की गाथाएं छिपी हुई हैं।

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