राजस्थान में राइट टू हेल्थ बिल को लेकर प्रदेश सरकार और डॉक्टर आमने-सामने हैं। पिछले कई दिनों से डॉक्टर Right To Health Bill के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं। इस दौरान पुलिस ने उन्हें रोकने के लिए बल प्रयोग भी किया था। प्रदेश सरकार ने मंगलवार को विधानसभा में बिल पास भी करा लिया है। जिसके बाद से राजस्थान भर के निजी डॉक्टर्स, रेजिडेंट्स और निजी हॉस्पिटल विरोध में हड़ताल पर उतर आए हैं।
आइए हम समझते हैं कि आखिर Right To Health Bill क्या है? राइट टू हेल्थ बिल से लोगों को क्या फायदा मिलेगा? राइट टू हेल्थ बिल का विरोध क्यों हो रहा है? और प्रदेश सरकार का इस पूरे मामले को लेकर क्या कहना है। चलिए शुरू करते हैं।
देखिए, दरअसल राइट टू हेल्थ बिल 2018 के राजस्थान विधानसभा चुनावों में सत्ताधारी दल कांग्रेस के चुनावी वादों में से एक था। पहली बार वित्त वर्ष 2022-23 में सीएम अशोक गहलोत ने राइट टू हेल्थ बिल लाने की घोषणा की। इसके मुताबिक, सितंबर 2022 में विधेयक को विधानसभा में पेश किया गया लेकिन अनिवार्य मुफ्त आपातकालीन उपचार के प्रावधान सहित कई अन्य कारणों से यह उस समय आगे नहीं बढ़ सका। भारी विरोध के चलते विधेयक को प्रवर समिति को भेजा दिया था। जिसके बाद चालु बजट सत्र में मंगलवार को इसे पारित किया गया।
राइट टू हेल्थ बिल के क्या फायदे हैं?
सबसे आसान शब्दों में समझे तो निजी अस्पतालों में उपचार के लिए मरीजों को मना नहीं किया जाए इसीलिए राइट टू हेल्थ विधेयक लाया गया है। विधेयक के अंतर्गत इमरजेंसी में इलाज का खर्चा सम्बन्धित मरीज द्वारा वहन नहीं करने की स्थिति में समस्त भरपाई राज्य सरकार करेगी। राइट टू हेल्थ विधेयक के तहत राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण लॉजिस्टिकल शिकायत का भी गठन किया गया है। साथ ही, जिला स्तरीय प्राधिकरण का प्रावधान भी है।
दूसरा कारण यह है कि प्रदेश के बड़े निजी अस्पतालों को राज्य सरकार द्वारा रियायती दर पर जमीनें उपलब्ध करवाई गई हैं। इन अस्पतालों को राइट टू हेल्थ विधेयक के अंतर्गत जोड़ने का प्रावधान किया गया है। इस बिल से राजस्थान के निवासियों को यह अधिकार और लाभ मिलेंगे।
– राजस्थान के निवासियों को स्वयं को स्वस्थ बनाए रखने के लिए जानकारी लेने का अधिकार।
– निर्धारित सभी सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों में निःशुल्क परामर्श, दवाओं, उपचार, आपातकालीन परिवहन और आपातकालीन देखभाल का अधिकार।
– राजस्थान के निवासियों को अधिसूचित सभी सार्वजनिक अस्पतालों में सर्जरी के लिए मुफ्त/किफायती देखभाल का अधिकार।
– चिरंजीवी योजना के तहत कवर किए गए राजस्थान के निवासियों को बीमा योजना के तहत सूचीबद्ध अस्पतालों के माध्यम से बीमा योजना के तहत मुफ्त सेवाओं का लाभ उठाने का अधिकार।
– भूमि आवंटन के माध्यम से स्थापित निजी चिकित्सालयों में राजस्थान के निवासियों को निःशुल्क सेवाएं प्राप्त करने का अधिकार।
– सभी स्वास्थ्य देखभाल प्रतिष्ठानों द्वारा सार्वजनिक या निजी उचित रेफरल परिवहन का अधिकार मिलेगा ।
– चिकित्सक के परामर्श के बाद भी मरीज के चले जाने की स्थिति में ट्रीटमेंट समरी लेने का अधिकार।
– सेवाओं का लाभ उठाने के बाद हुई किसी भी शिकायत के मामले में सुनवाई का अधिकार।
– प्रत्येक स्वास्थ्य केंद्र से भुगतान बाकी होने के बावजूद मृतक के परिवार के सदस्य या अधिकृत व्यक्ति को शव प्राप्त करने का अधिकार आदि।
राइट टू हेल्थ बिल का विरोध क्यों हो रहा?
आइए अब समझते हैं कि राइट टू हेल्थ बिल का विरोध क्यों हो रहा है। दरअसल, बिल में निजी अस्पतालों को भी सरकारी स्कीम के मुताबिक सभी बीमारियों का इलाज नि:शुल्क करना है। विरोध कर रहे संगठनों का कहना है कि सरकार अपने सरकारी अस्पतालों में योजना चलाए, लेकिन निजी अस्पतालों पर जबरन बिल लागू किया गया तो निजी अस्पताल बंद होने के कगार पर पहुंच जाएंगे। क्योंकि बिल में निजी अस्पतालों में इमरजेंसी इलाज निःशुल्क करना अनिवार्य है।
संगठनों का कहना है कि बिल में इमरजेंसी की कोई परिभाषा नहीं है। इमरजेंसी में निःशुल्क इलाज देने के बाद सरकार निजी अस्पतालों को भुगतान कैसे करेगी? एम्बुलेंस सर्विसेज की लागत की भरपाई किस तरह की जाएगी ? बिल में कहा गया है कि मरीज के पास पैसे नहीं हैं, तो उसे बाध्य नहीं किया जा सकता है, लेकिन इलाज देना होगा। इलाज से इनकार नहीं किया जा सकता। अगर हर मरीज अपनी बीमारी को इमरजेंसी बताकर फ्री इलाज लेगा तो अस्पताल अपने खर्चे कैसे निकालेंगे?
आईएमए के पदाधिकारियों का कहना है कि इस बिल में गर्भवती महिला को डिलीवरी का अधिकार किसी भी अस्पताल में दिया गया है। लेकिन, निजी अस्पताल उनसे डिलीवरी का खर्च नहीं ले सकता तो ये पैसे कौन देगा? एसोसिएशन का कहना है कि इस बिल के ड्राफ्ट में तहसील स्तर पर भी कमेटी बनाने की बात कही गई है। इस कमेटी में जनप्रतिनिधि एवं अधिकारी होंगे। एसोसिएशन के अनुसार कमेटी को अधिकार होगा कि वह कभी भी किसी भी अस्पताल की जांच कर सकेगी और अस्पताल का रिकॉर्ड भी देख सकेगी। इसे लेकर डॉक्टर्स में नाराजगी है। डॉक्टर्स का कहना है कि कोई नॉन मेडिकल फील्ड का व्यक्ति उनकी जांच कैसे कर सकता है।
बिल को लेकर सरकार का क्या कहना है?
जोधपुर में मीडिया बात करते हुए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राइट टू हेल्थ बिल को लेकर अपना रुख साफ किया था। इस दौरान सीएम ने कहा कि इस बिल से आम जनता और डॉक्टर दोनों को फायदा होगा। डॉक्टरों को भी बिल में सरकार का साथ देना चाहिए, इस तरह विरोध नहीं करना चाहिए। बाकी जो भी समस्याएं हैं, उन्हें बैठकर सुलझाया जा सकता है। सीएम ने कहा था कि इसके लिए सड़क पर आने की कोई जरूरत नहीं है। ये बिल सही है और सभी के हित का है।
वहीं, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य मंत्री परसादीलाल मीणा ने भी विधानसभा में कहा कि ‘राइट टू हेल्थ बिल’ जनता के हित में है। उन्होंने कहा कि सरकार ने सभी सदस्यों के सुझाव के आधार पर इस विधेयक को प्रवर समिति को भेजा था। विधेयक में सभी सदस्यों एवं चिकित्सकों के सुझाव शामिल किए गए हैं।
अब इस पूरे मामले में सरकार और प्रदेश के निजी डॉक्टर्स आमने-सामने हैं। बिल को लेकर सरकार पीछे हटती नहीं दिख रही तो वहीँ निजी अस्पताल भी हड़ताल पर है। सरकार और निजी डॉक्टर्स की इस लड़ाई में मरीज ज़रुर परेशान हो रहे हैं।
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