सुप्रीम कोर्ट की पांच न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने संविधान के 103 वें संशोधन अधिनियम 2019 की वैधता को बरकरार रखा है। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण पर अपनी मुहर लगा दी है। मामले की सुनवाई करते हुए पांच जजों वाली संवैधानिक पीठ ने EWS आरक्षण के पक्ष में 3-2 के अंतर से अपना फैसला सुनाया है।
जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी, जस्टिस जेबी पारदीवाला ने EWS आरक्षण पर सहमति जताई है। तीनों जजों का मानना है कि कि यह आरक्षण संविधान का उल्लंघन नहीं करता है। फैसला सुनाते हुए तीनों जजों ने यह भी माना कि EWS आरक्षण 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा का उल्लंघन नहीं करता है। वहीं, CJI जस्टिस यूयू ललित व जस्टिस रवींद्र भट ने इस पर असहमति जाहिर की। जस्टिस रविंद्र भट ने कहा कि कोटे की 50% सीमा का उल्लंघन नहीं किया जा सकता है इसलिए EWS आरक्षण किसी भी दृष्टिकोण से सही नहीं है।
जस्टिस दिनेश माहेश्वरी ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि सवाल बड़ा ये था कि क्या ईडब्ल्यूएस आरक्षण संविधान की मूल भावना के खिलाफ है? क्या इससे SC /ST/ OBC को बाहर रखना मूल भावना के खिलाफ है? उन्होंने कहा कि EWS आरक्षण किसी भी तरह से संविधान का उल्लंघन नही करता। EWS आरक्षण आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए सही है। ये संविधान के किसी प्रावधान का उल्लंघन नहीं करता। यह भारत के संविधान के बुनियादी ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है। वहीं, जस्टिस बेला त्रिवेदी ने कहा कि जस्टिस दिनेश माहेश्वरी सही कह रहे हैं और मैं भी उनकी राय से सहमत हूं। तो जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि आरक्षण कोई अंतिम सीमारेखा नहीं है। ये शुरुआत है सबको समान बनाने की।
दरअसल, EWS कोटे की संवैधानिक वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। इस मामले में कई याचिकाओं पर लंबी सुनवाई के बाद अदालत ने 27 सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। उस समय के सीजेआई एसए बोबडे, जस्टिस आर सुभाष रेड्डी, जस्टिस बीआर गवई की पीठ ने पांच अगस्त, 2020 को इस मामले को संविधान पीठ को भेज दिया था।