गुजरात में वर्ष 2022 में हुए दंगों की पीड़िता बिलकिस बानो ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की है। बिलकिस ने 13 मई को आए कोर्ट के आदेश पर दोबारा विचार की मांग की है। इसी आदेश के आधार पर सामूहिक बलात्कार और उसके परिवार के सदस्यों की हत्या के दोषी रिहा किए गए थे। मामला बुधवार को चीफ जस्टिस के सामने रखा गया है। उन्होंने इस पर विचार कर उचित बेंच के सामने लगाने का आश्वासन दिया है।
दरअसल, 13 मई को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अजय रस्तोगी और विक्रम नाथ की बेंच ने एक दोषी राधेश्याम शाह की याचिका पर फैसला देते हुए कहा था कि उसे सज़ा 2008 में मिली थी। इसलिए, रिहाई के लिए 2014 में गुजरात में बने कड़े नियम लागू नहीं होंगे बल्कि 1992 के नियम लागू होंगे। गुजरात सरकार ने 15 अगस्त को इसी आधार पर 14 साल की सज़ा काट चुके 11 लोगों को रिहा किया था। 1992 के नियमों में उम्र कैद की सज़ा पाए कैदियों की 14 साल बाद रिहाई की बात कही गई थी, जबकि 2014 में लागू नए नियमों में जघन्य अपराध के दोषियों को इस छूट से वंचित किया गया है।
बिलकिस बानो की ओर से दाखिल पुनर्विचार याचिका में कहा गया है कि जब मुकदमा महाराष्ट्र में चला, तो नियम भी वहां के लागू होने चाहिए, गुजरात के नहीं। अभी तक सुभाषिनी अली, रूपरेखा वर्मा महुआ मोइत्रा समेत कई नेता और सामाजिक कार्यकर्ता रिहाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे। इन्होंने गुजरात सरकार के आदेश को चुनौती दी थी। इन याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है। अब खुद बिलकिस बानो कोर्ट आई हैं और उन्होंने 13 मई को आए सुप्रीम कोर्ट के आदेश को वापस लेने की मांग की है।
आपको बता दें कि 2002 के गुजरात दंगों के दौरान दाहोद ज़िले के रंधिकपुर गांव की बिलकिस अपने परिवार के 16 सदस्यों के साथ भाग कर पास के गांव छापरवाड के खेतों में छिप गई। 3 मार्च 2002 को वहां 20 से अधिक दंगाइयों ने हमला बोल दिया। बिलकिस की 3 साल की बेटी समेत 7 लोगों की हत्या कर दी गई थी।
इसके बाद आरोपियों की तरफ से पीड़ित पक्ष पर दबाव बनाने की शिकायत मिलने पर सुप्रीम कोर्ट ने मुकदमा महाराष्ट्र ट्रांसफर कर दिया था। 21 जनवरी 2008 को मुंबई की विशेष सीबीआई कोर्ट ने 11 लोगों को उम्र कैद की सज़ा दी। 2017 में बॉम्बे हाई कोर्ट ने सज़ा को बरकरार रखा था।
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