न्यूज डेस्क। अरावली पर्वतमाला को पर्यावरणीय नुकसान से बचाने और मरुस्थलीकरण की रोकथाम के लिए केंद्र सरकार ने एक बड़ी योजना (Aravali Green Wall Project kya hai) की शुरुआत की है। इस परियोजना के तहत दिल्ली से लेकर राजस्थान होते हुए गुजरात के पोरबंदर तक 1,400 किलोमीटर लंबी और 5 किलोमीटर चौड़ी अरावली ग्रीन वॉल बनाई जाएगी। इस हरित पट्टी से न केवल जैव विविधता को संजीवनी मिलेगी, बल्कि जलवायु परिवर्तन और भूमि क्षरण जैसी गंभीर समस्याओं से भी निपटा जा सकेगा।
राजस्थान के 19 जिले होंगे शामिल
परियोजना में राजस्थान के 19 जिलों को शामिल किया गया है, जिनमें चित्तौड़गढ़, प्रतापगढ़, नागौर, अजमेर, भीलवाड़ा, जयपुर, भरतपुर, दौसा, उदयपुर, झुंझुनूं, सीकर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, सिरोही, पाली, राजसमंद, सवाई माधोपुर, करौली और अलवर प्रमुख हैं। इन जिलों में बड़े पैमाने पर पौधारोपण, चेक डैम का निर्माण और औषधीय पौधों की खेती की जाएगी।
16,053 करोड़ रुपए का बजट मंजूर
केंद्र सरकार ने इस महत्वाकांक्षी परियोजना के पहले चरण के लिए 16,053 करोड़ रुपए का बजट जारी किया है। इसके तहत 75 जलाशयों का सुधार और हजारों हेक्टेयर क्षेत्र में वृक्षारोपण किया जाएगा। चित्तौड़गढ़ जिले के सीता माता अभयारण्य का 1,500 हेक्टेयर क्षेत्र भी इस योजना में शामिल है।
अरावली क्यों है अहम?
अरावली पर्वतमाला विश्व की सबसे प्राचीन पर्वतमालाओं में से एक है और इसे सेंट्रल इंडिया का फेफड़ा भी कहा जाता है। यह पर्वत श्रृंखला पश्चिमी भारत को मरुस्थलीकरण से बचाती है और हजारों प्रजातियों के वन्यजीवों एवं वनस्पतियों का घर है। बावजूद इसके, पिछले कुछ दशकों में अवैध खनन, अतिक्रमण और वनों की कटाई ने अरावली की सेहत को बुरी तरह प्रभावित किया है। सुप्रीम कोर्ट भी इस स्थिति पर चिंता जता चुका है। वर्ष 2018 में कोर्ट ने कहा था कि दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान के सीमावर्ती इलाकों से 31 पहाड़ ग़ायब हो चुके हैं, जो अवैध खनन की भयावहता को दर्शाता है।
पर्यावरण संरक्षण के साथ रोज़गार भी
यह परियोजना सिर्फ पर्यावरण संरक्षण तक सीमित नहीं है। सरकार का दावा है कि इससे स्थानीय समुदायों को बड़े पैमाने पर रोज़गार मिलेगा। पौधारोपण, सिंचाई, रखरखाव और नर्सरी कार्यों में हज़ारों लोगों को रोजगार देने की योजना है। इसके अलावा यह हरित दीवार कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषण, मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार, जल स्रोतों के पुनरुद्धार और जलवायु परिवर्तन से निपटने में भी सहायक होगी।
निगरानी होगी डिजिटल
परियोजना के क्रियान्वयन की निगरानी जियो-टैगिंग और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के ज़रिए की जाएगी। हर पौधे का रिकॉर्ड रखा जाएगा ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वृक्षारोपण सिर्फ दिखावटी न रह जाए, बल्कि उसका दीर्घकालिक लाभ भी मिले।