अजमेर। अजमेर की ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में संकट मोचन महादेव मंदिर होने का दावा करने वाली याचिका अजमेर सिविल कोर्ट ने स्वीकार कर ली है। अदालत ने इसे सुनने योग्य माना है। यह याचिका हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता की ओर से लगाई गई है। सिविल कोर्ट ने अल्पसंख्यक मंत्रालय, दरगाह कमेटी अजमेर और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) को नोटिस भेजा है। मामले में अगली सुनवाई 20 दिसंबर को होगी। याचिका में रिटायर्ड जज हरबिलास सारदा की 1911 में लिखी किताब अजमेर: हिस्टॉरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव का हवाला देते हुए दरगाह के निर्माण में मंदिर का मलबा होने का दावा किया गया है। साथ ही गर्भगृह और परिसर में एक जैन मंदिर होने की बात कही गई है।
इन डॉक्यूमेंट्स के आधार पर किया दावा
- पूर्व जज हरबिलास सारदा की किताब अजमेर: हिस्टॉरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव
- भारत में सूफीवाद का इतिहास
याचिका में रिटायर्ड जज हरबिलास सारदा की 1911 में लिखी किताब अजमेर: हिस्टॉरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव का हवाला दिया गया है। इस किताब में जज ने मौजूदा इमारत में 75 फीट ऊंचे बुलंद दरवाजे के निर्माण में मंदिर के मलबे के अंश बताए थे। साथ ही किताब में दावा किया गया था कि इसमें एक तहखाना या गर्भगृह है, जिसमें शिवलिंग है।
किताब के अनुसार, यहां ब्राह्मण परिवार पूजा अर्चना करता था।
हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता का कहना है कि आप अजमेर दरगाह के आसपास घूमेंगे तो देखेंगे कि बुलंद दरवाजे पर हिन्दू परंपरा की नक्काशी की गई है। वहीं, जहां शिव मंदिर होता है, वहां झरना, पेड़, पानी आदि अवश्य होते हैं। ऐसे में पुरातत्व विभाग से भी अपील की है कि वे यहां जांच करें।