अजमेर। ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह में शिव मंदिर होने के दावे का मामला हाईकोर्ट तक पहुंच गया है। आज जस्टिस विनोद कुमार भारवानी की कोर्ट में दरगाह के खादिमों की संस्था अंजुमन सैयद जादगान की उस याचिका पर सुनवाई हुई, जिसमें मंदिर के दावे की सुनवाई पर रोक लगाने की मांग की गई है।
कमेटी के वकील आशीष कुमार सिंह और वागीश कुमार सिंह ने कहा कि– सुप्रीम कोर्ट ने प्लेसेज़ ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए देशभर की सभी अदालतों में इस तरह के मामलों पर सुनवाई पर रोक लगा रखी है। इसके बावजूद अजमेर सिविल कोर्ट इस वाद की सुनवाई कर रही है। ऐसे में इस सुनवाई पर रोक लगाई जाए।
हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल आर. डी. रस्तोगी ने अंजुमन कमेटी की याचिका का विरोध करते हुए कहा कि– कमेटी इस वाद में पक्षकार नहीं है, इसलिए वह हाईकोर्ट में याचिका दायर करने की पात्र नहीं है। यह याचिका सुनवाई योग्य नहीं है। कोर्ट अब इस मामले में एक सप्ताह बाद दोबारा सुनवाई करेगा।
सदियों से शांति, कौमी एकता और भाईचारे का प्रतीक रही है दरगाह
सुनवाई के लिए जयपुर आए अंजुमन सैयद जादगान के सचिव सैयद सरवर चिश्ती ने कहा कि– दरगाह अजमेर शरीफ सदियों से शांति, कौमी एकता और भाईचारे का प्रतीक रही है। यह अत्यंत दुखद है कि सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने के उद्देश्य से इसे विवादों में घसीटा जा रहा है। याचिकाकर्ता विष्णु गुप्ता द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों का कोई अकादमिक या ऐतिहासिक महत्व नहीं है। इसलिए याचिका का शीघ्र निपटारा किया जाना चाहिए ताकि भ्रम की स्थिति न बने।
दरगाह में शिव मंदिर होने का दावा
दरअसल, हिंदू सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष विष्णु गुप्ता ने 23 सितंबर 2024 को अजमेर कोर्ट में एक वाद दायर कर दावा किया था कि ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह परिसर में भगवान संकट मोचन महादेव का मंदिर है। उन्होंने अपने दावे में दरगाह कमेटी, अल्पसंख्यक मंत्रालय और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को पक्षकार बनाया है। इस वाद की सुनवाई अजमेर सिविल जज एवं न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी (अजमेर पश्चिम) की अदालत में 19 अप्रैल को निर्धारित है।
अजमेर दरगाह का इतिहास
बता दें कि ईरान (फारस) के प्रसिद्ध सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ने अजमेर को अपना स्थायी निवास बनाया था। उनके सम्मान में मुगल सम्राट हुमायूं ने दरगाह का निर्माण करवाया था। ख्वाजा साहब के प्रति अगाध श्रद्धा रखने वाले सम्राट अकबर हर वर्ष अजमेर की तीर्थयात्रा पर आते थे। बाद में अकबर और उनके पोते शाहजहां ने दरगाह परिसर के भीतर भव्य मस्जिदों का निर्माण भी करवाया था।
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