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कम राजनीति, ज़्यादा काम…जानिये शिवचरण माथुर को क्यों कहा जाता है राजस्थान का सबसे सफल मुख्यमंत्री ?

Rajasthan Ex CM Shiv Charan Mathur Biogrpahy : भारतीय राजनीति के फलक पर कुछ ऐसे व्यक्तित्व हुए हैं, जिनकी सादगी, ईमानदारी और प्रशासनिक क्षमता उन्हें एक अलग पहचान दिलाई है। राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर इन्हीं में से एक थे। अपने लंबे राजनीतिक करियर में उन्होंने विभिन्न पदों पर रहते हुए राजस्थान के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। सादगी भरा जीवन जीने वाले माथुर न केवल एक कुशल प्रशासक थे, बल्कि एक दूरदर्शी नेता भी थे, जिन्होंने राज्य को कई मोर्चों पर आगे बढ़ाया। इस आर्टिकल में हम उनके जीवन, राजनीतिक यात्रा और उनके द्वारा किए गए महत्वपूर्ण कार्यों को जानेंगे।

पूर्व मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर पर लिखी एक किताब का अंश लेकर लिखे तो, – नगरपालिका की सीढ़ियों पर रहे हों, या संसद के सिंहद्वार पर, विधायक रहे हों या मंत्री, सड़क पर रहे हों या सत्ता के शिखर पर मुख्यमंत्री के रूप में, उनकी आत्मा निर्बल वर्गों को संबल देने और राजस्थान को एक पूर्ण विकसित और समृद्ध राज्य के रूप में देखने को व्याकुल रही है। शिवचरण माथुर राजनेताओं में ‘सौम्य सन्त’ थे। वे सदैव गरीब, पीड़ित और निर्बल की सेवा के लिए खड़े रहते थे। कहा जाता है कि शिवचरण माथुर के कोई दुश्मन नहीं था, विरोधी भी उनकी तारीफ किया करते थे और उनकी कार्य कुशलता के कायल थे।

पारिवारिक पृष्ठभूमि और प्रारंभिक जीवन

शिवचरण माथुर का जन्म 14 फरवरी 1926 को मध्य प्रदेश के गुना जिले के एक छोटे से गांव मढ़ी कानूनगो में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। जब वे मात्र चार वर्ष के थे, तब प्रतिकूल पारिवारिक परिस्थितियों के कारण उन्हें अपनी मां के साथ अपने नाना के पास करौली, राजस्थान में रहना पड़ा। उनका पालन-पोषण भीलवाड़ा में हुआ, जहां उन्होंने अपनी प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा पूरी की। उन्होंने अजमेर के मेयो कॉलेज से उच्च शिक्षा प्राप्त की और कानून की डिग्री हासिल की। बताया जाता है कि शिवचरण माथुर का स्वभाव बचपन से ही शांत था। अपने कार्य में दृढ़ता, सच्चाई व ईमानदारी इनके खास गुण थे। बड़े भाई यशवन्त राय जिद्दी थे, खाने पीने की कोई चीज़ इन्हें नहीं लेने देते थे, पर यूं समझाने पर मान जाते थे। अपना कार्य समय पर करते थे। कभी किसी से झगड़ते नहीं थे और कठिनाई सहन करने की आदत थी।

छात्र जीवन से ही राजनीति में प्रवेश

माथुर का राजनीतिक जीवन छात्र राजनीति से ही शुरू हो गया था। वे स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लेने लगे और 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी उन्होंने अपनी भूमिका निभाई। अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने भीलवाड़ा में वकालत शुरू की, लेकिन उनकी रुचि हमेशा से जनसेवा और राजनीति में रही। उनका विवाह माणिक्य लाल वर्मा की पुत्री से हुआ, जो राजस्थान के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता थे। माणिक्य लाल वर्मा ने माथुर को राजनीति में आने के लिए प्रोत्साहित किया।

शिवचरण माथुर ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत राजस्थान छात्र कांग्रेस (1945-1947) के महासचिव के रूप में की। इसके बाद, वे भीलवाड़ा नगरपालिका बोर्ड के अध्यक्ष (1956-57) और फिर भीलवाड़ा जिला परिषद के प्रमुख (1964) बने। यह उनके राजनीतिक करियर का पहला बड़ा पड़ाव था। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और लगातार आगे बढ़ते गए।

राजनीतिक जीवन

शिवचरण माथुर का राजनीतिक जीवन बहुत लंबा और सक्रिय रहा। उन्होंने न केवल राजस्थान में बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। शिवचरण माथुर ने राजस्थान विधानसभा और भारतीय संसद दोनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे राजस्थान विधानसभा के सदस्य के रूप में सात बार चुने गए। साल 2003 में वे मांडलगढ़ (भीलवाड़ा) से विधायक बने थे। उन्होंने दो बार लोकसभा सांसद के रूप में कार्य किया। जिसमें में 1964-1967 तक तीसरी लोकसभा के सदस्य और 1991-1996 में दसवीं लोकसभा के सदस्य रहे।

कई मंत्रालयों को संभाला

पूर्व मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर ने विभिन्न सरकारों में मंत्री पद संभाला और राजस्थान के मुख्यमंत्री के रूप में दो बार कार्य किया। वर्ष 1967-1972 तक उन्होंने राजस्थान के शिक्षा, विद्युत, पीडब्ल्यूडी और जनसंपर्क मंत्री के रूप में कार्य किया। इसके बाद 1973-1977 में उन्होंने खाद्य और नागरिक आपूर्ति, कृषि, पशुपालन, डेयरी और योजना मंत्री के रूप में अपनी सेवाएं दी।

दो बार बने राजस्थान के मुख्यमंत्री

पूर्व मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर को दो बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बनने का गौरव प्राप्त हुआ। वे 14 जुलाई 1981 से 23 फरवरी 1985 तक और 20 जनवरी 1988 से 4 दिसंबर 1989 तक राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे। इस दौरान उन्होंने एक नेता से बढ़कर कुशल प्रशासक और जनसेवक की भूमिका निभाई। उनके प्रशासनिक अनुभवा का लाभ प्रदेश को मिला।

मुख्यमंत्री के पद से हटने के बाद भी शिवचरण ने कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ निभाईं, जो इस प्रकार हैं।

1980-1981: राजस्थान विधानसभा की सार्वजनिक उपक्रम समिति के अध्यक्ष।
1985-1987: राजस्थान विधानसभा की नियम समिति के संयोजक।
1987-1988: राजस्थान विधानसभा की अधीनस्थ विधान समिति के अध्यक्ष।
1991-1996: लोकसभा में विशेषाधिकार समिति के अध्यक्ष।
1994-1996: लोकसभा में ऊर्जा पर उप-समिति के संयोजक।
1998-2003: राजस्थान विधानसभा की अनुमान समिति के अध्यक्ष।
1999-2003: प्रशासनिक सुधार आयोग, राजस्थान के अध्यक्ष।
2008-2009: असम के राज्यपाल।

शिवचरण माथुर अपनी सादगी, ईमानदारी और निर्णायक प्रशासनिक क्षमता के लिए प्रसिद्ध थे। मुख्यमंत्री के रूप में भी उनका जीवन बहुत ही साधारण था। वे हमेशा जनता के लिए सुलभ थे और उनकी समस्याओं को धैर्यपूर्वक सुनते थे। उनके मुख्यमंत्री बनने का किस्सा भी काफी रोचक है, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने एक फिजिशियन के माध्यम से उन्हें मुख्यमंत्री बनाए जाने का संदेश दिया था।

शिवचरण माथुर का निधन 25 जून 2009 को हृदय गति रुकने से हुआ, जब वे असम के राज्यपाल के पद पर थे। उनका जीवन राजस्थान की राजनीति में एक मील का पत्थर था। उन्होंने अपने राजनीतिक करियर में ईमानदारी, सादगी और कर्तव्यनिष्ठा के मूल्यों को हमेशा सर्वोपरि रखा। वे न केवल एक सफल राजनेता थे, बल्कि एक दूरदर्शी प्रशासक भी थे जिन्होंने राजस्थान के विकास में एक अमिट छाप छोड़ी। आज भी उन्हें राजस्थान के सबसे ईमानदार और कुशल मुख्यमंत्रियों में से एक के रूप में याद किया जाता है।